30.7.09

मुंबई मेट्रो क्या करेगा ?

शिरीष खरे, मुंबई से
“हमारे शहर रहने लायक होने चाहिए, जहाँ आम आदमी गुज़र-बसर कर सके." ये शब्द प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के थे.
21 जून 2006 को मुंबई मेट्रो रेल का शिलान्यास करते हुए जब मनमोहन सिंह ने ये बातें कही थीं तो लगा था कि मुंबई में मेट्रो रेल सच में मुंबई की नई जीवन-रेखा होगी. लेकिन यह सिक्के का एक पहलू था. आज तीन साल बाद भी इसका दूसरा पहलू सवाल बन कर खड़ा है कि आखिर मेट्रो से किन ताकतों का कैसा हित जुड़ा है ? इस मेट्रो रेल से तरक्की के मुकाबले कितनी तबाही होगी ? आखिर मेट्रो से शहर की यातायात व्यवस्था किस हद तक बेहतर होगी ? और ये भी कि मुंबई मेट्रो क्या करेगा ?
सवाल यूं ही नहीं हैं. हर सवाल के साथ कई तरह की आशंकाएं और उलझनें जुड़ी हुई हैं और इन सब से बढ़ कर भ्रष्टाचार के नमूने, जिसने मेट्रो रेलवे को संदिग्ध बना दिया है.
प्रोजेक्ट के नोटिफिकेशन को ही देखें तो इसमें डेवेलपर्स को यह छूट दी गई है कि वह “कंस्ट्रक्शन खत्म होने के बाद बची हुई जमीनों को अपने मुनाफे के लिए बेच ” सकते हैं. इसके अलावा उन्हें “सेंट्रल लाइन के दोनो तरफ आरक्षित 50 मीटर जमीनों को दोबारा विकसित” करने की भी छूट मिलेगी. इससे कारर्पोरेट ताकतों को शहर की “सबसे कीमती जमीनों को हथियाने और यहां से व्यापारिक गतिविधियां चलाने” की छूट खुद-ब-खुद मिल जाएगी.
पैसा-पैसा और पैसा
मुंबई मेट्रो पूरी तरह से सरकारी प्रोजेक्ट नहीं है. इसमें प्राइवेट कंपनी सबसे ज्यादा निवेश करेगी. जाहिर है सबसे ज्यादा मुनाफा भी कंपनी ही कमाएगी, न कि सरकार. दूसरा, नोटिफिकेशन के हिसाब से शहर का खास भू-भाग कंपनी की पकड़ में आ जाएगा. यहां से उसे अपना कारोबारी एजेण्डा पूरा करने में सहूलियत होगी. याने मेट्रो से मुनाफा भी कमाओ, मेट्रो से निकलने वाली जमीन से कारोबार भी फैलाओ. इसे कहते है एक तीर से दो शिकार!!
इन दिनों कई कंपनियां रियल इस्टेट, आईटी और रेल के विकास के नाम पर शहर की जमीनों को हथियाना चाहती हैं. हाल ही में बदनाम हुई 'सत्यम' और उसकी सहयोगी कंपनी 'मेटास' ने हैदराबाद के आसपास की हजारों एकड़ जमीन हथिया ली थी.
‘मेटास’ तो 1,200 करोड़ रूपए की हैदराबाद मेट्रो रेल में भी शामिल थी. लेकिन ‘सत्यम’ में 7,800 करोड़ रूपए के घोटाले के बाद ‘मेटास’ को जांच एजेंसियों के हवाले कर दिया गया. ‘मेटास’ के आऊट होने के बाद अनिल अंबानी की ‘रिलायंस- इंफ्रास्ट्रक्चर' अब हैदराबाद मेट्रो में भी बोली लगाने को बेताब है. वैसे भी ‘रिलायंस- इंफ्रास्ट्रक्चर' मुंबई के साथ-साथ दिल्ली मेट्रो का काम तो कर ही रही है.
अगर दाल में कुछ भी काला नहीं है तो सरकार मेट्रो से जुड़े अहम तथ्यों से पर्दा हटाए। लेकिन धरातल पर ऐसा करना शायद सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है. यही कारण है कि “सूचना के अधिकार” के तहत कुछ सामान्य-सी सूचनाएं मांगने पर उसने तुरूप का इक्का फेंका- “इस किस्म की सूचनाएं साझा करने से राष्ट्र को खतरा हो सकता है.”
कगार की आग
पिछले महीने 11 मई को शहर की झोपड़ियों से हजारों लोग निकले और यशवंत राव चौहान सेंटर पहुंचे. यहां ‘शहरी विकास विभाग’ ने मेट्रो फेस-2 के लिए दो दिनों की जनसुनवाई रखी थी. लोगों की भारी संख्या को देखकर बड़े अधिकारी चौंक खड़े हुए. न केवल संख्या बल्कि लोगों के कई सवालों ने भी उन्हें घेर लिया. जनसुनवाई में 19 बातों का पालन करना होता है, लेकिन प्रशासन ने चुप्पी साधी, फिर थोड़ी-सी जगह निकाली और निकल भागा.
इसी तरह नवंबर, 2008 में भी प्रदेश सरकार ने प्रोजेक्ट से जुड़ी आपत्तियां मांगी थीं. इसके बाद उसे आपत्तियों से भरे 15,000 पत्र मिले. 8,000 लोग मेट्रो के विरोध में सड़क पर उतरे. तब भी सरकार ने लोगों के विरोध को नजरअंदाज कर दिया था. ऐसे में शहर के बीचों बीच विरोध का एक नारा सुनाई देने लगा- “मेट्रो रेल क्या करेगा, सबका सत्यानाश करेगा !!”
आंकड़ों की मानें तो मेट्रो से 15,000 से ज्यादा परिवार उजड़ेंगे. इससे लाखों लोग बेकार हो जाएंगे. अकेले ‘कार सेड डिपो’ बनाने में ही 140 एकड़ से भी ज्यादा जमीन जाएगी. इससे जनता कालोनी, संजय नगर, एकता नगर, आजाद कम्पाउण्ड, गांधी नगर, केडी कम्पाउण्ड और लालजीपाड़ा जैसी बस्तियों के नाम नए नक्शे से मिट जाएंगे. तब यहां के हर मोड़ से गुजरने वाले सुस्त कदम रस्ते और तेज कदम राहें हमेशा के लिए रुक जाएंगे.
आज इन इलाकों से हजारों हाथों को काम मिलता है. कल इन हाथों के थम जाने से रोजगार का संकट गहरा जाएगा. कई रहवासी तो 40-45 साल से यही रहते आ रहे हैं. इन्होंने रोजमर्रा के मामूली धंधों से एक बड़ा बाजार तैयार किया है. उत्पादन के नजरिए से देखा जाए तो धारावी के मुकाबले यहां का बाजार काफी बड़ा है. इस बाजार से 10,000 लोगों की घर-गृहस्थियां आबाद हैं. यह इलाका कई सुंदर आभूषण और सजावटी चीजों को बनाने के लिए मशहूर है. यहां से कई चीजों को दुनिया भर में भेजा जाता है. इन चीजों को बनाने और भेजने में 15,000 महिलाएं शामिल हैं.
इस इलाके में बड़ी संख्या में लोग बेकरी और फुटकर सामान बेचने से भी जुड़े हैं. कुल मिलाकर शहर का यह हिस्सा सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों का मजबूत ताना-बाना है. अगर यह टूटा तो रहने और जीने के कई तार टूट जाएंगे. शहर की रफ्तार बढ़ाने वाले बहुत सारे पंख बिखर जाएंगे.
‘कार सेड डिपो’ बनने से पोईसर नदी भी अपना वजूद खो देगी. साथ ही इससे लगा नेशनल पार्क प्रभावित होगा. अभी तक “पर्यावरण पर होने वाले असर का मूल्यांकन ” भी नहीं हो सका है. ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986’ के तहत ऐसा होना जरूरी है. यह कब होगा, तारीख कोई नहीं जानता.
ऐसी है योजना
मुंबई में मेट्रो रेल का पहला चरण 62.68 किलोमीटर का है जिसमें वरसोवा-अंधेरी-घाटकोपर, कोलाबा-बांद्रा-चारकोप और भांडुप-कुर्ला-मानखुर्द को जोड़ा जाएगा. इसके लिए 2011 की समय सीमा तय की गई है. दूसरे चरण को 2011-2016 के बीच खत्म करने का लक्ष्य रख कर 19.5 किलोमीटर तक मेट्रो की रेलवे पटरियों और अन्य सुविधाओं का विस्तार किया जाएगा. तीसरे चरण में 40 किलोमीटर तक निर्माण लक्ष्य रखा गया है, जिसे 2016 से 2021 के बीच पूरा करना है.
शहर का ट्रांसपोर्ट सिस्टम
कुछ ऐसी रिपोर्ट जारी हुई हैं, जो ट्रांसपोर्ट के नजरिए से मेट्रो को ठीक नहीं मानतीं. आईआईटी, दिल्ली के ट्रांसपोर्ट जानकारों ने एक अध्ययन में पाया कि मुंबई में 47 प्रतिशत रहवासी या तो पैदल चलते हैं, या साइकिल से.
इसी तरह 11 प्रतिशत रहवासी कार या मोटर साइकिल चलाते हैं. इसके बाद बस और रिक्शा से चलने वाले लोगों का प्रतिशत घटा दें तो ट्रेन से चलने वाले कुल 21 प्रतिशत ही बचते हैं. लेकिन ट्रांसपोर्ट के बजट का आधे से ज्यादा हिस्सा मेट्रो के लिए खर्च किया जा रहा है. जहां तक लंबी दूरी की बात है तो मेट्रो बेहद मंहगा प्रोजेक्ट हैं. इसमें घनी आबादी वाली बस्तियों के विस्थापन से होने वाले नुकसान को भी जोड़ दिया जाए तो पूरा प्रोजेक्ट बेहद खर्चीला हो जाता है.
ट्रांसपोर्ट के जानकार सुधीर बदानी के मुताबिक-“ मुंबई में ट्रेन के पुराने सिस्टम को दुरूस्त बनाने और बस-ट्रांसपोर्ट को विकसित करने से राहत मिलेगी. जहां मेट्रो के पूरे प्रोजेक्ट में 65,000 करोड़ रूपए खर्च होंगे, वहीं 2,00 किलोमीटर बस-ट्रांसपोर्ट तैयार करने में सिर्फ 3,000 करोड़. इसलिए बस का रास्ता सस्ता, बेहतर और व्यवहारिक है. यह पर्यावरण और रहवासियों के अनुकूल भी है.”
स्लमडाग मिलेनियेर को ‘गोल्डन ग्लोब’ और ‘आस्कर’ आवार्ड मिलने के बाद मुंबई को तीसरी दुनिया के सबसे दिलचस्प शहरों में से एक कहा जा रहा है. यहां एक तरफ ‘अंधेरी’ की उमंग में डूबी रातें हैं तो दूसरी तरफ 'धारावी' जैसा कस्बाई इलाका है. एक तरफ बेहतरीन रेस्टोरेंट, बार और नाइट-क्लब हैं तो दूसरी तरफ खुली झोपड़ियां, कच्ची-पक्की गलियां और टूटी-फूटी नालियां हैं.
इतनी विविधता वाले शहर की योजनाएं जितनी ज्यादा असंतुलित होगी, नुकसान भी उसी अनुपात में होगा. मुंबई मेट्रो में एक हिस्से को फायदा पहुंचाने के लिए दूसरे हिस्से से कीमत वसूली जाएगी. इस मेट्रो से कुछ लोगों के लिए सफर आसान हो जाएगा लेकिन यह कोई नहीं कहना चाहता कि इसी मेट्रो के कारण हज़ारों परिवार की घर-गृहस्थी की गाड़ी रुक जाएगी.

2 टिप्‍पणियां:

somadri ने कहा…

aaj tarikki karne ka matlab hai garib ke pet per lat maro

jaipur me bhi metro ka kaam shuru ho chuka hai .. kya hoga retili mitti me metro banake.. roj kisi garib ka hi ghar ujadega ...
metro kya tarikki ka prateek hai?

sirf paise ke liye ho raha hai sabkuch

dhiresh ने कहा…

विश्व बैंक के चाकरों सका और क्या उम्मीद कीजियेगा?