6.9.11

खोए बच्चों की वापसी का इंतजार


आगरा।बौद्ध नगर में एक छोटे से कमरे में रहने वाली सोमवती को अपने तीन बच्चों की वापसी का पिछले नौ साल से इंतजार है। वर्ष 2002 में सोमवती के 10 से 14 वर्ष की उम्र के तीन लड़के एक के बाद एक करके गायब हो गए। अपने बच्चों से बिछड़ने की पीड़ा झेलने वाली सोमवती अकेली नहीं है बल्कि ऐसे सैकड़ों मां-बाप हैं जो अपने खोए बच्चों की वापसी का आज भी इंतजार कर रहे हैं।

सोमवती के बच्चों के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस ने पांच साल तक नहीं लिखी। इसके बाद वर्ष 2010 में इस मामले की फाइल बंद कर दी गई। पुलिस और प्रशासन के गलियारों में दर-दर भटक रही इस गरीब महिला ने स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से राष्ट्रपति से गुहार लगाई जहां से राज्य सरकार को इस मामले की जांच के निर्देश दिए गए। फाइल तो दोबारा खुल गई पर सोमवती आज भी बच्चों के इंतजार में पथराई आंखों से इन तंग गलियों को देखती है।

मध्य प्रदेश के मंडला जिले में जनजातीय परिवार की किशोरी सुनीता को वर्ष 2004 में उनके कुछ परिचित 17 साल की उम्र में दिल्ली में काम दिलवाने के बहाने ले गए थे। सुनीता के पिता कुंवर सिंह को दो साल तक उनके परिचित यह कहकर टालते रहे कि उनकी बेटी दिल्ली में काम कर रही है। पर कई बार दिल्ली जाने के बावजूद उन्होंने कुंवर सिंह को न तो उनकी बेटी से मिलवाया गया और न ही उससे बात करने दी।

दो वर्ष बाद 2006 में कुंवर सिंह ने प्रशासन और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। उन्हें शक है कि उनकी बेटी को किसी गिरोह के हाथों बेच दिया गया है। कुंवर सिंह की रिपोर्ट में वे लोग बाकायदा नामजद किए गए हैं जो उनकी बेटी को झूठा दिलासा लेकर दिल्ली ले गए थे। लेकिन सरकारी कार्यालयों और थानों में चक्कर काट रहे इस असहाय पिता की गुहार सुनने वाला कोई नहीं है।

गैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) के अनुसार दिल्ली, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में बच्चे गायब हो रहे हैं। हालांकि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा ऐसे मामलों का रिकार्ड रखा जाता है। पर दिलचस्प बात यह है कि क्राई और उसके सहयोगी संगठनों ने जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी एकत्र की तो पता चला कि बच्चों के गायब होने के मामलों की संख्या वास्तव में थाने में दर्ज मामलों से कहीं ज्यादा है।

समस्या की गम्भीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में पिछले वर्ष प्रतिदिन 18 बच्चे गायब हुए। क्राई की रपट के अनुसार वर्ष 2010 में दिल्ली में पहले नौ महीनों में गायब हुए 2161 बच्चों में से 1102 लड़के और 962 लड़कियां थीं। इनमें से 1556 बच्चों को तो ढूंढ निकाला गया लेकिन 603 बच्चों को कुछ पता नहीं चला।

मध्यप्रदेश में वर्ष 2003 से 2009 के बीच 57253 बच्चे गायब हो गए। इनमें से लगभग 5350 बच्चों का आज तक पता नहीं चल पाया है।

उत्तर प्रदेश के आठ जिलों में अक्टूबर 2010 में सूचना का अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार 250 बच्चे गायब हो चुके थे। ये आठ जिले हैं-गोरखपुर, मऊ, बाराबंकी, मुजफ्फरनगर, आगरा, अम्बेडकर नगर, प्रतापगढ़ और आजमगढ़। इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा फरवरी 2008 में उपलब्ध करवाई गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2006 में राज्य से 3649 बच्चे गायब हो गए थे जिनमें से 712 को तब तक प्रशासन ढूंढ नहीं पाया।

क्राई की रपट के अनुसार देश के नौनिहालों का बड़ी संख्या में गायब होना बदस्तूर जारी है। गायब बच्चों में से बड़ी तादाद गरीब और आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर परिवारों की है। रपट के अनुसार इन बच्चों का इस्तेमाल बंधुआ मजदूर, बाल मजदूर, बाल विवाह और यौन शोषण के लिए किया जाता है। कई बच्चे ऐसे भी हैं जो घरेलू हिंसा और विभिन्न प्रकार के शोषण से परेशान होकर घरों से भाग जाते हैं और अंतत: किसी गिरोह या स्वार्थी तत्वों के हाथ पड़कर शोषण के शिकार हो जाते हैं।

क्राई की निदेशक योगिता वर्मा के अनुसार, "कई बार ये बच्चे भिखारियों और जेबकतरों के गिरोहों के हाथों शोषित होते हैं। नशीले पदाथरें के तस्कर भी इनका इस्तेमाल करते हैं।"

वर्मा के अनुसार, "खासतौर से सड़कों व चौराहों पर रहने वाले बच्चों को अगवा कर न केवल उनका शारीरिक और यौन शोषण होता है। चिंता की बात यह है कि अक्सर ऐसे मामले दर्ज नहीं हो पाते हैं। "

रपट के अनुसार इस समस्या से निपटने में दो बड़ी बाधाएं सामने आती हैं। पहली बाधा कानूनी है। क्राई के अनुसार यह बात चिंताजनक है कि देश में बच्चों की तस्करी से सम्बंधित कोई अलग कानून नहीं है, इसलिए बच्चों की खरीद-फरोख्त अथवा तस्करी को कानूनी नजरिए से भारत में एक अलग आपराधिक श्रेणी में नहीं रखा जाता है।

दूसरी समस्या है पुलिसकर्मियों में ऐसे मामलों से निपटने के लिए संवेदनशीलता और दक्षता का अभाव। रपट के अनुसार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी यह पाया है कि ऐसे मामलों को पुलिस प्राथमिकता नहीं देती। पुलिसकर्मियों को ऐसे मामलों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत है।