बुंदेलखंड की तस्वीर बदलने की कवायद को मध्य प्रदेश का ग्रामीण अभियांत्रिकी सेवा (आरईएस) तार-तार करने में लगा है. करोड़ों की लागत से बनाई गई नहरें और स्टॉप बांध की हालत इतनी खस्ता है कि वे पहली बरसात के पानी में ही ढह जाएंगी. बुंदेलखंड पैकेज के तहत कराए गए विकास कार्यो का जायजा लेने आए तकनीकी दल की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है.
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैले बुंदेलखंड इलाके में कुल 13 जिले हैं. इनमें से सात उत्तर प्रदेश में और छह जिले(छतरपुर, सागर, दमोह, टीकमगढ़, पन्ना और दतिया) मध्य प्रदेश में आते हैं. इस इलाके की देश और दुनिया में पहचान गरीबी और भुखमरी को लेकर रही है. समस्या ग्रस्त क्षेत्र के रूप में पहचान बना चुके इस इलाके के लोगों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पहल पर 7,200 करोड़ का विशेष पैकेज मंजूर हुआ था. इस पैकेज की राशि का उपयोग 13 जिलों में मुख्य तौर पर सिंचाई परियोजना सहित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए किया जा रहा है. मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में सिंचाई के लिए नहर और टॉप बांध बनाने का काम ग्रामीण विकास विभाग की ग्रामीण अभियांत्रिकी सेवा के जिम्मे है. यहां पूरी हुई 50 परियोजनाओं की हकीकत जानने के लिए जनवरी माह में योजना आयोग के अधीन आने वाले नेशनल रेन फेड एरिया अथॉरिटी के एक तकनीकी दल ने नमूने के तौर पर 10 परियोजनाओं का मौका मुआयना किया. तकनीकी विशेषज्ञ एके सिक्का और केडी शर्मा की रिपोर्ट चौंकाने वाली है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों ने अपनी जरूरत और मैदानी स्थिति के मुताबिक सिंचाई के प्रबंध किए हैं. इन्हें पूरा करते वक्त आसपास के क्षेत्र के समतलीकरण, आकार विशेष का कोई ध्यान नहीं रखा गया है. आरईएस द्वारा बनाए गए नहर व स्टॉप बांध मुश्किल से नजर आते हैं, अपूर्ण हैं और उनका निर्माण घटिया स्तर का होने के कारण पहली बरसात में ही बह जाने का अंदेशा है. दमोह जिले के हर्रई में बना एक स्टॉप बांध पहली ही बरसात में बह गया था. इतना ही नहीं इस स्टॉप बांध में दरवाजा तक नहीं था.
नहर और स्टॉप बांध के घटिया निर्माण पर तकनीकी दल ने सवाल उठाते हुए बुंदेलखंड पैकेज के तहत अन्य कार्य आईईएस से न कराए जाने की अनुशंसा की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सिंघपुर में पेयजल वितरण परियोजना पूरी होने के बावजूद बंद पड़ी है. डेढ़ साल पहले योजना पूरी होने के बाद भी लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाया है.
बुंदेलखंड की हालत में सुधार लाने के लिए मंजूर पैकेज का दुरुपयोग किसी से छुपा नहीं है. इससे पहले भी पन्ना जिले में विकास कार्यो में गफलत की कलई खुल चुकी है. सूचना के अधिकार के तहत सामने आए दस्तावेजों से पता चला था कि दुपहिया वाहनों से टनों मिट्टी और पत्थर ढोया गया है. इसी तरह शिवपुरी जिले में निर्माण कार्य में उपयोग में लाए गए लोहे का 52 हजार रुपये किलोग्राम की दर से भुगतान किया गया है. अब तो तकनीकी दल ने ही सिंचाई योजनाओं के तहत कराए गए निर्माण कार्यो पर सवाल उठाते हुए आरईएस की कार्यशैली को संदिग्ध बना दिया है.
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