29.7.11

मानव तस्करी के शिकार हो रहे हैं राजधानी के नौनिहाल

नई दिल्ली.‘साहब वो बोल नहीं सकती, सुन भी नहीं सकती,.उसे बचा लो साहब, मेरी बच्ची को बचा लो।’ पिछले चार हफ्तों से अपनी मूक-बधिर बेटी की तलाश में बसंतकुंज की रेहाना मदद की आस में दर-दर भटक रही है।

रेहाना की तरह राजधानी में सैकड़ों ऐसे परिवार हैं, जो अपने कलेजे के टुकड़े की तलाश में सालों से इधर-उधर भटक रहे हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं। हद तो तब हो जाती है, जब इन दुखियारों की मदद करने से पुलिस भी मना कर देती है।

कलेजे के टुकड़े से बिछड़ने व पुलिस की उपेक्षा से आहत इन परिजनों के जख्मों में मरहम लगाने के लिए क्राई नामक संस्था ने एक कार्यक्रम आयोजित कर दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों सहित गैर सरकारी संस्थाओं के प्रमुखों के सामने उन्हें अपनी फरियाद सुनाने का अवसर मुहैया कराया।

रेहाना की तरह पिछले नौ साल से बेटे राहुल की तलाश कर रहे सुंदर के ने कहा कि बेटे की तलाश में जब पुलिस से मदद मांगने गए तो उन्होंने पहले खुद ही बेटे की तलाश करने की बात कह वहां से भगा दिया। बेटे के न मिलने पर जब दुबारा थाना पहुंचा तो पुलिस वालों ने उसे मरा बता दिया।

इसी तरह 2006 से लापता विकास की दादी कृष्णा बताती हैं कि बहुत भागदौड़ की, लेकिन वह नहीं मिला। पुलिस वाले आते है और यह कह कर चले जाते हैं कि जान पहचान में ढूंढो, वहीं कहीं होगा। उनका परिवार आज तक इस सदमे से उबर नहीं पाया है। आगरा जगदीशपुर की सोनबती की कहानी तो और भी दिल दहला देने वाली है।

उनके तीन बेटे 2002 में उसकी आंखों के सामने से गायब हो गए। तीनों की उम्र 12,10 और 14 थी। इस सदमे से उसका पति भी चल बसा। बच्चों की तलाश में थाने का चक्कर काटना अब उसकी दिनचर्या सी बन गई है। पांच साल बाद एक एनजीओ के प्रयास से इस मामले में रिपोर्ट दर्ज की गई। बावजूद इसके आज तक उनके बच्चे नहीं मिल पाए हैं।

क्राई द्वारा दिल्ली के आठ जिलों में कराए गए सर्वे के अनुसार, इस साल दिल्ली से करीब 1260 बच्चे लापता हुए हैं। इनमें 570 लड़के व 690 लड़कियां शामिल हैं। लापता होने वाले इन बच्चों में अधिकतर की उम्र 24 महीने से लेकर 18 साल के बीच है।

क्राई के अनुसार, इस साल सर्वाधिक 549 बच्चों के लापता होने की शिकायत बाहरी जिले से दर्ज कराई गई है। इनमें से 437 बच्चे सकुशल घर लौट आए, लेकिन 112 बच्चों का अभी तक कोई सुराग नहीं लगा है। वहीं उत्तर पश्चिम जिले से 465 लापता बच्चों में सिर्फ 203 का सुराग लग सका है।

पूर्व आईपीएस अधिकारी अमोद कंठ के अनुसार, बच्चों के अपहरण अब पैसों की जगह बाल मजदूरी के लिए किया जाता है। मानव तस्करी का 70 प्रतिशत कारोबार बच्चों के माध्यम से देश में सक्रिय है। बावजूद इसके अभी तक हमारे कानून में मानव तस्करी की परिभाषा में बाल मजदूर को शामिल नहीं किया गया है।

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