नई दिल्ली/भोपाल. मध्य प्रदेश एक बार फिर गलत वजह से चर्चा में है। ताजा मामला राज्य में बच्चों के कुपोषण को लेकर है।
बच्चों के अधिकारों की वकालत करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने मध्य प्रदेश के दस जिलों में किए गए सर्वे के आधार पर दावा किया है कि यहां कुपोषित बच्चों की संख्या 60 फीसदी से ज्यादा है।
क्राई का कहना है कि पूरे राज्य में आदिवासी समुदाय के 74 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि राजधानी भोपाल की पुनर्वास कॉलोनियों के 49 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
संस्था के प्रदेश में इस सर्वे को पूरा करने वाले विकास संवाद के प्रशांत दुबे का कहना है कि सिर्फ रीवा जिले में अकेले 83 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
रीवा में 2006 से 2009 के बीच करीब 15 हजार बच्चों की कुपोषण से मौत हो चुकी है जबकि अन्य जिलों में भी कुपोषित बच्चों का आंकड़ा सरकारी आंकड़े से बहुत अधिक है।
संस्था द्वारा राजधानी भोपाल की पुनर्वास कॉलोनियों में कराए गए शोध के आंकड़े और भी ज्यादा चौंकाने वाले मिले हैं। भोपाल के लगभग 11 रिसेटमेंट कॉलोनियों से इकट्ठा किए गए आंकड़ों से पता चला है कि यहां के 49 फीसदी बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं। जबकि इन्हीं इलाकों के 20 फीसदी बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
दिल्ली में क्राई की निदेशक योगिता वर्मा का कहना है कि भले राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य के सभी महिलाओं के मामा होने का दावा करें। लेकिन वे अभी भी राज्य के मासूम बच्चों को कुपोषण से निजात दिलाने में नाकाम साबित हुए हैं।
राज्य बच्चों के बेहतर देखभाल के लिए जरूरी आंगनबाड़ी का भी पूरी इंतजाम नहीं करा पाए हैं। अभी भी पूरे मध्य प्रदेश में लगभग 47 प्रतिशत आंगनबाड़ियों की कमी हैं।
क्राई की निदेशक ने आगे कहा कि राज्य सरकार को सबसे पहले यह कबूलने की जरूरत है कि यहां कुपोषित बच्चों की संख्या सरकारी आंकड़े से कहीं अधिक है, तभी इसे रोकने की सही शुरुआत हो सकेगी।
क्राई के एक अन्य सदस्य आरबी पाल का कहना है कि राज्य में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लगभग 74 फीसदी बच्चे भी कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
आरबी का कहना है कि अगर राज्य में कुपोषण को हटाना है तो सरकार को तुरंत आंगनबाड़ी और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत चलने वाले योजनाओं को दुरुस्त करने की जरूरत है। इसके अलावा महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को भी बेहतर ढंग से लागू करने की दरकार है।
बच्चों के अधिकारों की वकालत करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने मध्य प्रदेश के दस जिलों में किए गए सर्वे के आधार पर दावा किया है कि यहां कुपोषित बच्चों की संख्या 60 फीसदी से ज्यादा है।
क्राई का कहना है कि पूरे राज्य में आदिवासी समुदाय के 74 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि राजधानी भोपाल की पुनर्वास कॉलोनियों के 49 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
संस्था के प्रदेश में इस सर्वे को पूरा करने वाले विकास संवाद के प्रशांत दुबे का कहना है कि सिर्फ रीवा जिले में अकेले 83 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
रीवा में 2006 से 2009 के बीच करीब 15 हजार बच्चों की कुपोषण से मौत हो चुकी है जबकि अन्य जिलों में भी कुपोषित बच्चों का आंकड़ा सरकारी आंकड़े से बहुत अधिक है।
संस्था द्वारा राजधानी भोपाल की पुनर्वास कॉलोनियों में कराए गए शोध के आंकड़े और भी ज्यादा चौंकाने वाले मिले हैं। भोपाल के लगभग 11 रिसेटमेंट कॉलोनियों से इकट्ठा किए गए आंकड़ों से पता चला है कि यहां के 49 फीसदी बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं। जबकि इन्हीं इलाकों के 20 फीसदी बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
दिल्ली में क्राई की निदेशक योगिता वर्मा का कहना है कि भले राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य के सभी महिलाओं के मामा होने का दावा करें। लेकिन वे अभी भी राज्य के मासूम बच्चों को कुपोषण से निजात दिलाने में नाकाम साबित हुए हैं।
राज्य बच्चों के बेहतर देखभाल के लिए जरूरी आंगनबाड़ी का भी पूरी इंतजाम नहीं करा पाए हैं। अभी भी पूरे मध्य प्रदेश में लगभग 47 प्रतिशत आंगनबाड़ियों की कमी हैं।
क्राई की निदेशक ने आगे कहा कि राज्य सरकार को सबसे पहले यह कबूलने की जरूरत है कि यहां कुपोषित बच्चों की संख्या सरकारी आंकड़े से कहीं अधिक है, तभी इसे रोकने की सही शुरुआत हो सकेगी।
क्राई के एक अन्य सदस्य आरबी पाल का कहना है कि राज्य में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लगभग 74 फीसदी बच्चे भी कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
आरबी का कहना है कि अगर राज्य में कुपोषण को हटाना है तो सरकार को तुरंत आंगनबाड़ी और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत चलने वाले योजनाओं को दुरुस्त करने की जरूरत है। इसके अलावा महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को भी बेहतर ढंग से लागू करने की दरकार है।