शिरीष खरे
मणिपुर में उग्रवाद और उग्रवाद के विरोध में जारी हिंसक गतिविधियों के चलते बीते कई दशकों से बच्चे हिंसा की कीमत चुके रहे हैं. यह सीधे तौर से हिंसक गतिविधियों तो कहीं-कहीं गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण की तरफ धकेले जा रहे हैं. राज्य में स्थितियां तनावपूर्ण होते हुए भी कई बार नियंत्रण में तो बनी रह जाती हैं, मगर स्कूल और स्वस्थ्य सेवाओं जैसे बुनियादी ढ़ांचे कुछ इस तरह से चरमराए हुए हैं कि लोगों का विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है.
बच्चों के हकों के लिए काम करने वाली संस्था क्राई हिंसा से सबसे ज्य़ादा प्रभावित तीन जिलों चन्देल, थौंबल और चुराचांदपुर में सक्रिय है. इसके द्वारा जगह-जगह बच्चों के सुरक्षा समूह बनाये जा रहे हैं. यहां की आदिवासी दुनिया के भीतर मौजूद अलग-अलग समुदायों में आपसी तनाव बहुत ज्यादा हैं, ऐसे बहु जातीय समूहों में रहने वाले बच्चों के बीच से डर और भेदभाव दूर करने और उनमें आत्मविश्वास जगाने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है. क्राई से असीम घोष ने बताया कि ‘‘यहां के बच्चे डर, अनहोनी, अनिश्चिता और हिंसा के साए में लगातार जी रहे हैं, यहां जो माहौल है उसमें बच्चे अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित हैं. इसलिए कार्यशालाओं के पहले स्तर में हमारी कोशिश बच्चों के लिए सुरक्षित महौल बनाने की रहती है, जहां वह बेझिझक होकर अपनी बात कह सकें और दूसरे आदिवासी समुदायों के बच्चों के साथ घुल-मिल पाएं. इन कार्यशालाओं को पूरे प्रदेश भर में फैले हिंसा और उसके चलते होने वाले तनावों से उभरने के लिए एक शांतिपूर्ण प्रक्रिया के रुप में भी देखा जा सकता है.’’
मणिपुर में बच्चों के हिंसा के प्रभाव से बचाने के लिए नागरिक समूहों के आगे आने की संभावनाएं प्रबल हो रही है. इन दबाव समूहों ने बीते लंबे अरसे से राष्ट्रीय स्तर पर जैसे कि बच्चों के अधिकारों के सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग और संबंधित मंत्रालयों पर इस बात के लिए दबाव बढ़ाया है कि वह मणिपुर में हिंसा से प्रभावित बच्चों की समस्याओं और जरूरतों को वरीयता दें. अहम मांगों में यह भी शामिल है कि अतिरिक्त न्यायिक शक्ति प्राप्त सेना यह सुनिश्चित करे कि हिंसा और आघातों के बीच किसी भी कीमत पर बच्चों को निशाना नहीं बनाया जाएगा. इसी के साथ राज्य में किशोर अधिनियम से प्रावधानों (Juvenile Justice Care and Protection Act, 2000 and its amendments enacted in 2006) के अनुसार किशोर न्याय प्रणाली को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू किया जाएगा. इसके अलावा यहां राज्य के अधिकारियों पर सार्वजनिक सुविधाओं पर निवेश बढ़ाने, योजनाओं के क्रियान्वयन को सुदृढ़ बनाने और अधिकारों से संबंधित सेवाओं जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं, बच्चों के लिए ART यानी एंटी रेट्रोविरल थेरेपी और स्कूल की व्यवस्थाओं को दुरुस्त बनाने के लिए भी दबाव बढ़ाया जा रहा है. असल में यहां प्राथमिकता के स्तर पर अधिकारों से संबंधित सेवाओं को दुरुस्त बनाने के दृष्टिकोण को सैन्य आधारित दृष्टिकोण से ऊपर रखे जाने की जरूरत है.
मणिपुर में आंतकवाद से संबंधित घातक परिणामों के चलते 1992-2006 तक 4383 लोग भेट चढ़ गए हैं. जम्मू-काश्मीर और असम के बाद मणिपुर देश के सबसे हिंसक संघर्ष का इलाका बन चुका है. अन्तर जातीय संघर्ष और विद्रोह की वजह से 1950 को भारत सरकार ने इस राज्य में (Armed Forces Special Power Act) यानी सशक्त्र बलों के विशेष शक्ति अधिनियम लागू किया. इस अधिनियम ने विशेष बलों को पहली बार नागरिकों पर सीधे-सीधे हमले की शक्ति दी गई, जो कि सुरक्षा बलों के लिए प्रभावी ढंग से व्यापक शक्तियों में रूपान्तरित हो गईं. यहां जो सामाजिक सेवाएं हैं, वह भी फिलहाल अपनी बहाली के इन्तजार में हैं, जहां स्कूल और आंगनबाड़ियां सही ढ़ंग से काम नहीं कर पा रही हैं, वहीं जो थोड़े बहुत स्वास्थ्य केन्द्र हैं वह भी संसाधनों से विहीन हैं. प्रसव के दौरान चिकित्सा व्यवस्था का अकाल पड़ा रहता है. न जन्म पंजीकरण हो रहा है और न जन्म प्रमाण पत्र बन रहा है. अनाथ बच्चों की संख्या में बेहताशा बढ़ोतरी हो रही है, बाल श्रम और तस्करी को नए पंख लग गए हैं और बर्बादी की कगार तक पहुंच गए परिवारों के बच्चे वर्तमान हिंसक संघर्षों का हिस्सा बन रहे हैं. जबकि बच्चों के लिए खेलने और सार्वजनिक तौर पर आपस में मिलने के सुरक्षित स्थानों का पता तो बहुत पहले ही खो चुका था.
गैर सरकारी संगठनों के अनुमान के मुताबिक मणिपुर में व्याप्त हिंसा के चलते 5000 से ज्यादा महिलाएं विधवा हुई हैं, और 10000 से ज्यादा बच्चे अनाथ हुए हैं. अकेले जनवरी- दिसम्बर 2009 के आकड़े देखें जाए तो सुरक्षा बलों द्वारा 305 लोगों को कथित तौर पर मुठभेड़ में मार गिराए जाने का रिकार्ड दर्ज है. बंदूकी मगर गैर राजकीय हिंसक गतिविधि में 139 लोगों के मारे जाने का रिकार्ड मिलता है. विभिन्न हथियारबन्द वारदातों के दौरान 444 लोगों के मारे जाने का रिकार्ड मिलता है. जबकि नवम्बर 2009 तक कुल 3348 मामले दर्ज किए गए हैं. लड़कियों के खिलाफ अपराध के मामले देखें तो 2007 से 2009 तक कुल 635 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें 24 हत्याओं और 86 बलात्कार के मामले हैं. बाल तस्करी का हाल यह है कि जनवरी 2007 से जनवरी 2009 तक अखबारों में प्रकाशित रिपोर्ट आधार पर 198 बच्चे तस्करी का शिकार हुए हैं. बाल श्रम के आकड़ों पर नज़र डाले तो 2007 को श्रम विभाग, मणिपुर द्वारा कराये गए सर्वे में 10329 बाल श्रमिक पाए गए हैं. जहां तक स्कूली शिक्षा की बात है तो सितम्बर 2009 से जनवरी 2010 तक 4 लाख से ज्यादा बच्चे स्कूलों में हाजिर नहीं हो सके हैं. दरअसल लंबे अरसे से यहां हिंसा को रोकने और राजकीय सेवाओं के दोबारा बहाल किये जाने के लिए सरकार पर गैर सैन्य उपायों पर सोचने के लिए दबाब बनाया जा रहा है.
मणिपुर सेना से मुक्त कब होगा इस बारे में अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता है मगर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्य में तैनात सेना को स्कूल खाली करने का आदेश जरूर दिया है. गौर करने लायक बात यह है कि मणिपुर के असंख्य स्कूलों का उपयोग सेना द्वारा सराय के रुप में किया जा रहा है. अगर सेना सुप्रीम कोर्ट के दिये गए आदेश को ही माने तो भी यहां के बहुत सारे बच्चों के लिए कम से कम पढ़ने-लिखने की जगह तो खाली होगी.
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संपर्क : shirish2410@gmail.com
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