खण्डवा। यहां से दो खबरें हैं, पहली वो जो यहां की नहीं है और यहां सबको पता है कि सरकार ने हिंसक-गैरकानूनी हथकण्डे अपनाने वाली माओवादी ताकतों को कुचलने की ठानी है। दूसरी खबर वो जो यहां की है और यहां से बाहर अभी बहुत कम लोगों को पता है कि सरकार खुद हिंसक-गैरकानूनी हथकण्डे अपना रही है, इस तरह वह शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताने वाले नर्मदा घाटी के डूब प्रभावितों के विरोध को दबा देना चाहती है। यह और बात है कि पुलिस द्वारा नर्मदा बचाओ आंदोलन कार्यालय पर गैरकानूनी कब्जा किये जाने और दर्जनों बड़े कार्यकताओं को बगैर वारंट हिरासत में लिए जाने के बाद उठे विरोध को अब देश भर से समर्थन मिलने लगा है।
एक नजर में :
पिछली 30 अक्टूबर को पुलिस ने नर्मदा बचाओ आंदोलन, खण्डवा कार्यालय पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा किया और आलोक अग्रवाल सहित कई बड़े कार्यकर्ताओं को बगैर वारण्ट हिरासत में लिया।
अगले रोज विद्युत विभाग की जांच के नाम पर आंदोलन के कार्यालय को फिर से निशाना बनाया गया। विद्युत विभाग के कर्मचारियों की बजाय पुलिस वाले बिल लेकर पहुंचे।
चित्तरुपा पालित और रामकुंवर ने कार्यालय पर गैरकानूनी कब्जे के खिलाफ जेल के भीतर अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया। इसके समर्थन में महेश्वर, अपरवेदा और ओंकारेश्वर बांध के हजारों प्रभावितों का भी अनिश्चितकालीन धरना और क्रमिक अनशन शुरू हो गया।
बरगी बांध से प्रभावित धरने में शामिल हुए। इसके अलावा बड़वानी, हरदा, भोपाल, इंदौर, जबलपुर आदि जगहों पर आंदोलन के समर्थन में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए।
मेधा पाटकर के नेतृव्य में एक प्रतिनिधि मण्डल कलेक्टर से मिला। उन्होंने आंदोलनकारियों में लगाये गए झूठे मामलों को तुरंत वापिस लेने की मांग की।
राज्य मानवाधिकार आयोग ने जिला कलेक्ट्रर और पुलिस अधीक्षक को नोटिस भेजकर 3 दिनों में घटना की रिपोर्ट मांगी।
मामला यही थमता नजर नहीं आ रहा है बल्कि आंदोलन के समर्थन में अब शहर से लेकर देशभर के कई जन संगठन और नागरिक समूह भी सामने आ रहे हैं। रिटायर कर्नल वोम्बेटकेरे ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पुलिस की असंवैधानिक कार्यवाही के बारे में बताया है। दूसरी जगहों से कई समुदायों ने सरकार से उच्च न्यायालय के आदेशों के तहत विस्थापितों को खेती की जमीन और अन्य पुनर्वास लाभ दिए जाने की वकालत की है।
इस सबंध में वरिष्ठ गांधीवादी विचारक सुश्री राधा भट्ट और उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान के बसंत पाण्डे ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कार्यकताओं की रिहाई के लिए मांग की है। पीपुल्स यूनियन आफ डेमोक्रेटिक राईटस ने अपनी प्रेस रिलीज में आंदोलन के प्रति एकजुटता जाहिर की है। साथ ही एक आनलाइन पेटिशन में दुनियाभर से अबतक 500 से ज्यादा लोगों और समूहों ने दस्तखत करके बांध प्रभावितों के दमन पर आपत्ति दर्ज की है। वहीं एशियन मानवाधिकार आयोग ने भी घटना की निंदा करते हुए एक्शन एलर्ट जारी किया है।
खंडवा में धरनास्थल पर बैठे कई आंदोलनकारी यह मानते हैं कि सरकारी मशीनरी अभी भी अपनी सारी ताकत उच्च न्यायालय के आदेशों को मानने की बजाय विस्थापितों के संघर्ष को दबाने में खर्च कर रही है। आंदोलन कार्यालय को निशाना बनाया जाना प्रशासन का एक नया और गैरकानूनी हथकण्डा है। इसी के चलते पुलिस ने आंदोलन कार्यालय को गैरकानूनी ढ़ंग से अपने नियंत्रण में लिया और वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल को बगैर वारण्ट गिरफ्तार भी किया। पुलिस ने आलोक अग्रवाल की गिरफ्तार को लेकर गुमराह भी किया। एक तरफ लोगों को बताया गया कि उन्हें पूछताछ के लिए लाया गया है दूसरी तरफ वकील से कहा गया कि उन्हें पुराने मामले में गिरफ्तार किया गया है।
जिला प्रशासन के इशारे पर विद्युत विभाग ने जिस तरीके से कार्यालय की जांच की उसे लेकर भी आंदोलनकारी गुस्से में हैं। जांच के बाद विद्युत विभाग ने आंदोलन कार्यालय को व्यवसायिक स्थल बताते हुए 15149 रुपए का अतिरिक्त बिल जारी कर दिया। बिल पहुंचाने विद्युत विभाग के कर्मचारियों की बजाय पुलिसकर्मी आए। आंदोलनकारी बताते हैं कि कार्यालय में बांध प्रभावितों के संवैधानिक अधिकार, कानूनी और लोकत्रांतिक तरीकों के संरक्षण से जुड़ा दस्तावेजीकरण होता है। यह तो किसी तरह की व्यवसायिक गतिविधि नहीं है। विद्युत विभाग तो पहले भी परेशान करता रहा है। वह तो कई बार ताला लगा होने की झूठी बात लिखकर ज्यादा बिल वसूलता रहा है जबकि विद्युत मीटर तो खुले वराण्डे में ही लगा हुआ है। आंदोलन अब इसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की भी सोच रहा है।
विस्थापितों के साथ धोखे पर धोखा
नर्मदा घाटी में बन रहे इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध के हज़ारों विस्थापितों को जमीन के बदले जमीन, वयस्क पुत्रों को जमीन और सभी को पुनर्वास की अन्य सुविधाएं देकर बसाना था। मगर इस नीति का खुला उल्लंघन करते हुए विस्थापितों को धोखे एवं दमन के आधार पर ही उज़ाडा गया है। इतना ही नहीं विस्थापितों के हक में दिये गये सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के फैसलों पर भी अमल नही किया जा रहा है। प्रदेश और देश के विकास के नाम पर त्याग करने वाले लाखों विस्थापित आज दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर है जबकि दूसरी तरफ बांध बनाने वाली कम्पनी एनएचडीसी ने बीते 4 सालों में 1200 करोड़ रूपए से ज्यादा शुद्ध मुनाफा कमाया है।
इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध के हजारों विस्थापितों की माँग हैं कि :
इंदिरा सागर परियोजना में :
1. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा दायर याचिका में पहले 8 सितम्बर 2006 और फिर 2 सितम्बर 2009 को यह आदेश दिया है कि किसानों के सभी वयस्क पुत्र और अविवाहित पुत्रियों को 5.5 एकड़ कृषि जमीन दी जाए। इसका पालन किया जाए।
2. विस्थापित मज़दूर परिवारों को डूब से खुलने वाली जमीन बांटी जाए और उन्हें सिंचाई की सुविधा दी जाए। जिससे वह पानी खुलने पर हर साल गेहूं और गर्मी की फसल ले सकें। इस तरह विस्थापित मजदूर परिवार भी इज्जत से रोजगार पा सकें।
3. इंदिरा सागर डूब क्षेत्र में विस्थापित मछुआरों के साथ गुंडागर्दी एवं मारपीट की जा रही हैं। इसे तत्काल रोका जाए और इंदिरा सागर में मछली मारने का अधिकार ठेकेदार को नहीं, विस्थापित को दिया जाए।
4. खेतीयोग्य जमीनों पर एनएचडीसी ने मामूली मुआवजा देकर कब्जा कर लिया है। इससे प्रभावित किसान दोबारा जमीन नहीं खरीद सके हैं। इसलिए जमीन के लिए दी जाने वाले विशेष पुनर्वास अनुदान (बढ़त राशि) को हरदा कमाण्ड के अच्छी दर 1.5 से 2 लाख रूपए एकड़ के हिसाब से दिया जाए।
5. अभी भी डूब क्षेत्र में छूटे हुए हजारों घर, जो मुआवजे से छूटे हैं, उनका भू-अर्जन करके मुआवजा दिया जाए।
6. जहां जमीन डूब चुकी है और अब जीने का कोई जरिया बचा ही नही है, उन गांवों के सभी घरों का भू-अर्जन करके विस्थापितों को मुआवजा और पुनर्वास दिया जाए।
7. इंदिरा सागर डूब क्षेत्र खासकर हरदा जिले में भयावह भ्रष्टाचार फैला है। प्रभावितों के अनुदान दलालों द्वारा अधिकारियों की मिलीभगत से निकाले जा रहे हैं। इस पर रोक लगाई जाए और स्वतंत्र जांच कर दोषियो को दण्डित किया जाए।
8. सभी पुनर्वास स्थलों पर विस्थापितों के लिए पूर्ण रोज़गार दिया जाए। उनके लिए बीपीएल राशन कार्ड बनाए जाएं और पुनर्वास स्थल पर स्कूल, अस्पताल, पेयजल आदि सभी सुविधाएं दी जाएं।
9. बहुत से गांवों में अभी तक परिवार सूची ही नही बनी है और वह पुनर्वास के समस्त लाभों से वंचित हैं, उन गांवों की परिवार सूचियां बनाकर, सभी विस्थापितों को पुनर्वास के लाभ दिये जाएं।
10. इंदिरा सागर के डूब में आने वाले छूटे हुए गांव का सर्वे करके परिवारों को मुआवजा और पुनर्वास दिया जाए।
11. 25 प्रातिशत से कम बची जमीन के भू-अर्जन के साथ परिसम्पत्तियों का भी अर्जन किया जाए।
12. जहां घर डूब हैं और जमीने बची हैं वहां 1 किलोमीटर के अंदर पुनर्वास स्थल का निमार्ण किया जाएं।
13. इंदिरा सागर बांध स्थल पर जल स्तर सूचित करने वाला स्केल मिटा दिया गया है, जो कि अत्यंत गंभीर है। बांध का जल स्तर बताने वाला सार्वजनिक स्केल फिर से लिखा जाए।
ओंकारेश्वर परियोजना में :
1. उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार विस्थापितों को सिंचित एवं उपजाऊ जमीन देकर बसाया जाए।
2. विस्थापितों को जमीन आवंटन के लिये अतिक्रमित जमीनों को न दिया जाए, जिससे अन्य गरीब परिवारों की रोटी न छिने और विस्थापित की सुरक्षित बसाहट हो सके।
3. उच्च न्यायालय की तारीख 23 सितम्बर 2009 और अन्य सभी आदेशों का तत्काल पालन किया जाए।
4. न्यायालयीन आदेश तथा पुनर्वास नीति के अनुसार कमाण्ड एरिया में विस्थापितों की इच्छा अनुसार घर प्लाट दिये जाएं।
5. छूटे हुए मकानों का भू-अर्जन किया जाए।
6. किसानों को अपर्याप्त मुट्ठी भर मुआवजा दिया गया है। कृषि जमीन का विशेष पुनर्वास अनुदान (बढ़त राशि) कम से कम 1.5 से 2 लाख रूपए एकड़ दिया जाए।
7. तालाब में मछली ठेकेदार को नहीं दी जाए। मछली मारने का सम्पूर्ण अधिकार विस्थापित को दिया जाए।
8. पुनर्वास के लाभों से वंचित सभी परिवारों को घर प्लाॅट, अनुदान व समस्त लाभ दिया जाए।
9. सन् 2004 में धाराजी प्रकरण में सैकड़ो लोगों को एनएचडीसी द्वारा पानी छोड़ने से बह जाना तथा पिछले महीने ग्राम कामनखेड़ा में नन्ही हरिजन बालिका का एनएचडीसी द्वारा पानी बढ़ाने से मौत के लिए जिम्मेदार एनएचडीसी को दण्डित किया जाए।
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