प्राथमिक शिक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद मुंबई और उपनगरीय इलाकों में बच्चे बीएमसी स्कूलों से मुंह मोड़कर निजी स्कूलों की तरफ जा रहे हैं.
बीएमसी स्कूल में जहां मुफ्त में शिक्षा दी जाती है वहीं निजी स्कूलों में औसतन साल भर में एक बच्चे पर तकरीबन 25-30 हजार रुपये खर्च आता हैं. लाख कोशिशों के बावजूद निजी स्कूलों में डोनेशन प्रथा खत्म होने के बजाए और मजबूत होती जा रही है.
बच्चे को स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए औसतन 25 हजार रुपये बतौर डोनेशन देने पड़ते हैं. समाज सेवा के नाम पर चलाए जा रहे निजी स्कूलों का कारोबार हर साल करीबन 20 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. आज शिक्षा कारोबार सालाना लगभग 5000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो चुका है जिसकी सही-सही जानकारी किसी के पास नहीं है.
सरकार साल दर साल बीएमसी स्कूलों में बच्चों को अच्छी शिक्षा और सुविधा देने के लिए बजट बढ़ाती जा रही है, लेकिन बच्चों की संख्या हर साल कम होती जा रही है. बीएमसी ने स्कूल शिक्षा को मजबूत बनाने के लिए 2007-08 में 1,051 करोड़ रुपये और 2008-09 में 1,350 करोड़ रुपये का प्रवाधान किया था, जबकि इस साल (2009-10) बीएमसी शिक्षा पर 1,651 करोड़ रुपये खर्च करेगी.
बीएमसी के अलावा केन्द्र और राज्य सरकार भी स्कूली शिक्षा में भारी भरकम रकम खर्च करती है. बीएमसी स्कूलों में शिक्षा पूरी तरह से मुफ्त दी जाती है. बच्चों की फीस, कॉपी-किताबें, स्कूल यूनिफॉर्म के साथ मिड-डे मिल के तहत खिचड़ी और दोपहर में दूध भी बच्चों को मुफ्त में मिलता है. इसके बावजूद हर साल तकरीबन 30 हजार बच्चे बीएमसी स्कूलों से तौबा कर रहे हैं.
इन स्कूलों में बच्चों का आंकड़ा वर्ष 1999 में 7.5 लाख था, जबकि बीते शिक्षण सत्र में बीएमसी के कुल 1,144 स्कूल में 4.50 लाख ही बच्चों ने दाखिला लिया. इस सप्ताह से शुरू हो रहे नए शिक्षण सत्र में यह संख्या और कम होने की आशंका जताई जा रही है.
बृहन्मुंबई महानगरपालिका शिक्षक सभा के महासचिव एवं ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टीचर्स ऑर्गनाइजेशन के निदेशक रमेश जोशी का का कहना है, 'बीएमसी स्कूलों में साल दर साल बच्चों की कम होती संख्या की मुख्य वजह लोगों की बदलती सोच है.'
उनके मुताबिक आज लोग सोचते हैं कि सिर्फ अंग्रेजी माध्यम में उनका बच्चा जाएगा तो ही उसका भविष्य संवर सकेगा. बीएमसी स्कूल तो गरीबों का स्कूल है, वहां बच्चा जाएगा तो समाज के लोग क्या कहेंगे? जबकि हमारे सरकारी स्कूलों में जो शिक्षक है वह निजी स्कूल के शिक्षकों के मुकाबले अधिक शिक्षित और प्रशिक्षित हैं.
मुंबई और आसपास के इलाकों में करीबन 2,000 निजी स्कूल हैं. जिनमें करीब-करीब 20 लाख बच्चे पढ़ते हैं और यह आंकड़ा सालाना करीबन 15 फीसदी की रफ्तार से बढ़ता जा रहा है. स्कूली शिक्षा आज सबसे सफल कारोबार बन गया है। निजी स्कूलों में फीस और दूसरे खर्च तय नहीं है.
सभी निजी स्कूलों की दरें अलग-अलग हैं. प्रवेश के समय इमारत या स्कूल के विकास के नाम पर लिये जाने वाली डोनेशन फीस इन स्कूल की आय का एकमुश्त सबसे बड़ा साधन है. तीन-चार साल के बच्चे के एडमिशन के लिए स्कूल प्रबंधन की ओर से मुंबई में 5 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक बतौर डोनेशन फीस वसूली जाती है, जिसकी कोई लिखित जानकारी नहीं दी जाती है.
इसके अलावा प्रवेश शुल्क, साल में होने वाली दो परीक्षाओं के अलावा हर महीने टेस्ट फीस, टर्म फीस (पिकनिक और कल्चरल्स प्रोग्राम) को मिलाकर सालभर में एक छात्र से औसतन सालभर में 30 हजार रुपये तक ले लिये जाते हैं. ड्रेस और किताबें स्कूल की बताई हुई दुकानों से ही लेनी पड़ती हैं जो अपेक्षाकृत 20 फीसदी तक महंगी ही होती हैं.
मंहगी होती शिक्षा के बावजूद निजी स्कूलों की तरफ बढ़ते रुझान पर राहुल ग्रुप ऐंड स्कूल कॉलेज के चेयरमैन लल्लन तिवारी कहते हैं, 'लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं इसीलिए वह अच्छे स्कूल में बच्चे को भेजना चाहते हैं, जिसके लिए पैसा मायने नहीं रखता है.'
महंगे से महंगे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे को भी कोचिंग का सहारा लेना पड़ रहा है. इस पर महेश टयूटोरियल कोचिंग के प्रबंध निदेशक महेश शेट्टी कहते हैं कि स्कूल में क्या पढ़ाया जाता है, हमे इससे कोई मतलब नहीं है। हमारा लक्ष्य होता है कि बच्चे परीक्षा में अधिक से अधिक नंबर ला पाए.
इसके लिए कोचिंग में नई तकनीक और रिसर्च के आधार पर बच्चों को शिक्षा दी जाती है. यही वजह है कि हर साल बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, जबकि मंदी के बावजूद कोचिंग फीस में करीबन 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
लगातार हो रहे शिक्षा के निजीकरण को लेकर बच्चों की शिक्षा पर काम करने वाले स्वयंसेवी संस्था क्राई की निदेशक योगिता वर्मा का कहना है, 'संविधान में शिक्षा को मूलभूत आवश्यकता बताया गया है. इसलिए सबको शिक्षा देना सरकार का कर्तव्य बनता है. शिक्षा के निजीकरण को बंद करना चाहिए. अमेरिका और इंगलैड में सरकारी शिक्षा ही सही मानी जाती है.'
क्राई का मानना है कि सबको मुफ्त और एक जैसी शिक्षा दी जानी चाहिए. वैसे भी सरकारी स्कूलों के अध्यापक निजी स्कूल के अध्यापकों के मुकाबले ज्यादा योग्य होते हैं.
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