शिरीष खरे
दिल्ली बाल संरक्षण आयोग राष्ट्रमंडल खेलों के निर्माण स्थलों पर काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चों के बचाव में आया है. इसके लिए आयोग ने बाल अधिकारों के घोर उल्लंघन को देखते हुए खेल आयोजन समिति सहित विभिन्न सरकारी एजेंसियों को नोटिस भेजा है. पिछले दिनों क्राई द्वारा जारी रिपोर्ट पर गंभीर चिंता जताते हुए आयोग ने भी यह माना है कि प्रवासी मजदूरों के बच्चों के अधिकारों का घोर उल्लंघन किया जा रहा है.
क्राई द्वारा जारी रिपोर्ट में निर्माण स्थलों पर रहने वाले बच्चों के कई बुनियादी अधिकारों जैसे आवास, स्वच्छता, गुणवत्तापूर्ण भोजन, स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य और स्कूली शिक्षा से बेदखल किए जाने से जुड़े पहलुओं को उजागर किया गया था. इस रिपोर्ट में श्रम कानूनों और संविदा श्रम अधिनियम के प्रावधानों सहित विभिन्न नियमों की खुलेआम अवमानना के साथ-साथ दिल्ली श्रम कल्याण बोर्ड की कई परियोजनाओं के निर्माण स्थलों में बच्चों के शोषण को नजरअंदाज बनाए जाने का भी खुलासा किया गया था.
दिल्ली बाल संरक्षण आयोग ने विभिन्न सरकारी एजेंसियों को जांच रिपोर्ट भेजते हुए प्रभावित बच्चों के उचित पुनर्वास और शिक्षा सहित सभी बुनियादी अधिकारों को जल्द से जल्द बहाल करने पर जोर दिया है.
क्राई का यह अवलोकन अध्ययन ध्यानचंद्र नेशनल स्टेडियम, आरके खन्ना स्टेडियम, तालकटोरा स्टेडियम, निजामुद्दीन नाला, नेहरू रोड, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के दौरों और सिरी फोर्ट निर्माण स्थल से जताए गए आंकड़ों पर आधारित था. क्राई की डायरेक्टर योगिता वर्मा के मुताबिक ‘‘हमने पाया कि इन कंस्ट्रक्शन साइट्स के बच्चे अस्थाई कैम्पों में रहते हैं. इन्हें स्तरीय भोजन, साफ पानी, स्वच्छता, शिक्षा और यहां तक कि किसी प्रकार का अच्छा माहौल नहीं मिल रहा है. कुल मिलाकर इन बच्चों के बाल अधिकारों का हनन हो रहा है.’’ योगिता वर्मा मानती है ‘‘गरीबी की वजह से कंस्ट्रक्शन साइट्स पर मजदूरों का माइग्रेशन हो रहा है और बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं. स्टडी में पाया गया कि कंस्ट्रक्शन साइट पर मौजूद कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता है.’’
हाइकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका के अनुसार राष्ट्रमंडल खेलों के अलग-अलग निर्माण स्थलों में लगभग 4.15 लाख दिहाड़ी मजदूर काम कर रहे हैं. यहां मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी दी जा रही है. कुलमिलाकर ऐसी तमाम गंभीर स्थितियों का सबसे ज्यादा खामियाजा मजदूरों के बच्चों को भुगतना पड़ रहा है.
यह सब तब हो रहा है जबकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने मई में ही कहा था कि आयोजन स्थलों पर काम करने वाले दैनिक मजदूरों को ‘दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स बोर्ड' (डीबीसीडब्ल्यूडब्ल्यूबी) के अंतर्गत पंजीकृत किया जाए ताकि उनके अधिकारों की रक्षा हो सके.
न्यायालय के आदेश को नई दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी), दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) एवं भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के पास भेज दिया गया था.
क्राई के मुताबिक निर्माण स्थलों पर बच्चों के लिए स्वच्छता की कोई व्यवस्था नहीं है. कहीं-कहीं चलित शौचालय हैं लेकिन उनकी ठीक से सफाई नहीं होती. बच्चों का ध्यान रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. इसके लिए निर्माण स्थलों के करीब कोई आंगनबाड़ी भी नहीं है. उनके रहने के स्थानों की हालत दयनीय है. उन्हें प्लास्टिक शीट से बनी झोपड़ियों में रखा गया है.
योगिता वर्मा के मुताबिक ‘‘बच्चों की तरफ हमारे कई संवैधानिक दायित्व हैं, कामनवेल्थ गेम्स को विश्वस्तरीय बनाने की कोशिश में इन संवैधानिक दायित्वों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है.’’ संस्था के मुताबिक दिल्ली में जो कामनवेल्थ गेम्स की तैयारी चल रही है, उसमें भारत सरकार अपने देश के बच्चों के लिए संवैधानिक दायित्व और अंतराष्ट्रीय मानवीय अधिकार वचनबद्धताओं को सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान बनाए. इसी तरह निर्माण कार्यो से जुड़े मजदूरों और उनके बच्चों के लिए आवास, स्वच्छता, गुणवत्तापूर्ण भोजन, स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य और स्कूली शिक्षा जैसे बुनियादी अधिकार बहाल किये जाएं. शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने को लेकर सरकार अगर वाकई गंभीर है तो उसे स्कूल से होने वाली ड्राप-आउट की इस समस्या को रोकने की पहल करनी होगी. आंगनबाड़ी और मिड-डे मिल जैसी योजनाओं को तत्काल प्रभाव में लाया जाए. दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश (11 फरवरी, 2010) अनुसार सभी परिवारों का पुनर्वास नागरिक सुविधाओं के साथ किया जाए.
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