19.3.10

भूख की पेट में भारत के बच्चे

शिरीष खरे


यह बीते साल नंबवर के आखिरी हफ्ते की बात है जब ग्राम-अगासिया, विकासखण्ड-मेघनगर, जिला-झाबुआ, मध्यप्रदेश के अर्जुन ने एक सर्द रात में कुपोषण के सामने दम तोड़ दिया था। उस सर्द समय में इसी आदिवासी इलाके के दर्जनों बच्चे भी मारे गए थे। अर्जुन सबसे कम उम्र के उन बच्चों में से एक ऐसा नाम था जो अपने हमउम्र साथियों के साथ फाइल की सूची में क्रमानुसार दर्ज हो चुका था। इस तरह एक और नाम भूखे भारत की सांख्यिकी में एक बड़े गुणनफल के बीचोंबीच कहीं दूर गुम हो चुका था।

यकीनन वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने अपना तीर चिड़िया की उस आंख पर ही साधा हुआ है जिसके निशाने पर पड़ते ही सकल घरेलू उत्पाद की दर 9% तक सरक सकती है। मगर कुपोषण और भूख का विकराल रुप देश के एक बड़े हिस्से को जिस ढंग से खा अरह है उससे भी आंख नहीं चुराई जा सकती है।

अक्टूबर 2009 से दिसम्बर 2009 के बीच, मध्यप्रदेश के इसी हिस्से के 4 गांवों से- भूख की चपेट में 70 आदमी मारे गए थे जिसमें 43 बच्चे थे। बीते दो सालों में अखबारों की कतरनों को ही जोड़ों तो मध्यप्रदेश के खण्डवा, सतना, रीवा, झाबुआ, शियोपुरी और सीधी जैसे जिलों से 456 आदमियों की मौतों का पता चलता है। मध्यप्रदेश में 5 साल के नीचे वाले बच्चों का मृत्यु-दर 1000/70 तक पहुंच गया है।

ऐसा ही हाल उड़ीसा और उत्तरप्रदेश का भी है। यहां से भी बाल-मृत्यु दर के अनुमान चौंकाते हैं। 5 साल के नीचे मरने वाले प्रति हजार बच्चों के मद्देनज़र उड़ीसा की हालत भी बहुत नाजुक है। इस तटीय प्रदेश के 29 जिलों में बाल-मृत्यु की दर कम से कम 1000/66 है। कंधमाल जिले की बाल-मृत्यु दर 1000/136 है जबकि मलकानगिरि और गजपति जिलों की बाल-मृत्यु दर 1000/127 है। उत्तरप्रदेश में बाल-मृत्यु दर है 1000/58। यहां के कौशांबी, भदौही, प्रतापगढ़, जौनपुर, इलाहाबाद और बनारस सबसे बुरी तरह से प्रभावित जिलों के तौर पर पहचाने गए हैं। आकड़े बताते है कि मध्यप्रदेश में 5 साल के नीचे के 60% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इसके बाद उड़ीसा में 5 साल के नीचे के 50: बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। कुल मिलाकर कुपोषण के मामले में भारत के मध्यप्रदेश और उड़ीसा सबसे बुरी तरह से प्रभावित प्रदेशों के तौर पर पहचाने गए हैं। मगर कर्नाटक (44%), गुजरात (47%) और महाराष्ट्र (51%) भी बहुत ज्यादा पीछे नज़र नहीं आते।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 (एनएफएचएस-3) बताता है कि देशभर में 6 साल से नीचे के 8 करोड़ बच्चे कुपोषण की स्थिति (फूले पेट, अविकसित कदकाठी, झरते बाल और फीके रंग) में जी रहे हैं। 1 साल के बच्चे का वजन औसतन 10 किलोग्राम होता है और उसके वजन में सलाना 2 किलोग्राम के हिसाब से बढ़ोतरी होना जरूरी है। मगर जब बच्चे का वजन सामान्य से कम होने लगता है तो यह कुपोषण की स्थिति में आ जाता है। तब उसमें बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। ऐसे बच्चों को अधिक से अधिक प्रोट्रीन, कार्बोहाइड्रेड, आइरन, विटामिन बी, कैल्शियम आदि मिलना चाहिए। यहां गरीब तबके के नवजात शिशुओं में उचित पालन-पोषण का अभाव और उनके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की गिरती स्थितियों को कुपोषण के पीछे के प्रमुख कारणों में गिना जा रहा है। उनके आसपास के माहौल में साफ-सफाई और पीने का स्वच्छ पानी न होने से यह संकट और अधिक गहराता जा रहा है।

यह एक कटु सत्य है कि देश में एक सेकेण्ड के भीतर 5 साल के नीचे का एक बच्चा कुपोषण के कब्जे में आ जाता है। मगर इतना सबकुछ होने के बावजूद सरकारी तन्त्र बच्चों के लिए एक जवाबदेह स्वास्थ्य नीति और योजना बनाने के बारे में सोच तक नहीं रहा है।

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संपर्क : shirish2410@gmail.com

1 टिप्पणी:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

आपकी यह पोस्‍ट आज दिनांक 26 मार्च 2010 के दैनिक जनसत्‍ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में सर्द समय में शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई।