शिरीष खरे
2001 की जनगणना में हर समुदाय से जुड़ी हजारों संख्याओं का गुणा-भाग मौजूद है। नहीं मौजूद है तो इस सवाल का जवाब कि ऐसी संख्याओं के बीच से एक बड़ी संख्या में लड़कियां कहां गायब हो रही हैं ?
1991 की जनगणना से 2001 की जनगणना तक, हिन्दु और मुसलमानों- दोनों की ही जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है। मगर 2001 की जनगणना का यह तथ्य सबसे ज्यादा चैंकाता है कि 0 से 6 साल के बच्चों के लिंग अनुपात में भी भारी गिरावट आई है। देश में बच्चों का लिंग अनुपात- 976:1000 है, जो कुल लिंग अनुपात- 992:1000 के मुकाबले बहुत कम है। यहां कुल लिंग अनुपात में 8 के अंतर के मुकाबले बच्चों के लिंग अनुपात में अब 24 का अंतर दर्ज है। असल में यह अंतर भयावह भविष्य की सीधी गिनती है।
सिख और जैन- देश के दो बहुत समृद्धशाली समुदाय हैं। मगर लिंग अनुपात के हिसाब से दोनों समुदाय सबसे पीछे खड़े मिलते हैं। सिख समुदाय में कुल लिंग अनुपात 893:1000 है और जैन समुदाय में कुल लिंग अनुपात 940:1000। 0 से 6 साल के बच्चों के लिंग अनुपात के मामले में तो दोनों की हालत और पतली नजर आती है- सिख समुदाय में 1000 लड़कों पर सिर्फ 786 लड़कियां हैं; मतलब 214 का अंतर। वहीं जैन समुदाय में 1000 लड़कों पर सिर्फ 870 लड़कियां हैं; 130 का अंतर। अगर महिला साक्षरता दर को देखें तो बाकी समुदायों के मुकाबले सिख और जैन समुदायों के आकड़े सबसे अच्छे हैं। इसके बावजूद दोनों समुदाय के बच्चों के बीच सबसे खराब लिंग अनुपात का होना एक विरोधाभाषी स्थिति पैदा करता है। एक ओर जैन समुदाय में महिला साक्षर की दर सबसे अच्छी है- 90.6%। दूसरी तरफ इसी समुदाय में महिलाओं के काम की भागीदारी सबसे कम है- 9.2%।
देखा जाए तो बौद्ध समुदाय में महिला साक्षरता दर 61.7% है, जो सिख समुदाय की महिला साक्षरता दर 63.1% से कम है। मगर बौद्ध समुदाय में बच्चों का लिंग अनुपात है- 942:1000, जो सिख और जैन समुदाय से बेहतर है। इसी तरह बौद्ध समुदाय में महिलाओं के काम की भागीदारी-31.7% है, जो न केवल जैन बल्कि सिख समुदाय में महिलाओं के काम की भागीदारी- 20.2% से काफी अच्छी है।
इसी तरह मुसलमान समुदाय में कुल लिंग अनुपात- 950:1000 और बच्चों का लिंग अनुपात- 936:1000 है, जो हिन्दू समुदाय के लिंग अनुपात- 925:1000 और बच्चों का लिंग अनुपात- 933:1000 से बेहतर है। जहां तक ईसाई समुदाय का सवाल है तो यह समुदाय कुल लिंग अनुपात- 1009:1000 और बच्चों का लिंग अनुपात- 964:1000 के लिहाज से देश में अव्वल है।
ऐसे ही देश के समृद्धशाली राज्यों जैसे गुजरात और पंजाब के कुछ आकड़े भी हैरत में डालते हैं। गुजरात के मद्देनजर यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है कि यहां के मुसलमान कई मामलों में हिन्दुओं से बेहतर स्थिति में हैं। यहां मुसलमान समुदाय में महिला साक्षर की दर है- 63.5%, जो हिन्दू समुदाय की महिला साक्षरता दर- 56.7% से बहुत अच्छी है। अगर कुल साक्षरता दर के आकड़े की भी बात करें तो मुसलमान समुदाय में यह है- 73.5%, जो हिन्दू समुदाय की कुल साक्षरता दर- 68.3% से अच्छी है। इसी तरह गुजरात में मुसलमान समुदाय में बच्चों का लिंग अनुपात- 913:1000 है और यह भी हिन्दू समुदाय में बच्चों के लिंग अनुपात- 880:1000 से बहुत बेहतर है। मगर बच्चों के लिंग अनुपात के हिसाब से पंजाब देश का सबसे पिसड्डी राज्य है। यहां बच्चों में 900:1000 का लिंग अनुपात है।
आम धारणा यह है कि साक्षरता की दर आबादी पर सीधा असर डालती है, साक्षरता को बढ़ाकर आबादी पर लगाम कसी जा सकती है, पढ़े-लिखे लोगों में लड़कियों के प्रति पूर्वाग्रह कम होता है। देखा जाए तो कुछ मामलों में यह धारणा सही भी हो सकती है; जैसे कि मुसलमान समुदाय में साक्षरता की दर (59.1) सबसे कम है, इसलिए जनसंख्या की दर सबसे अधिक है। मगर यही धारणा कुछ मामलों में गलत भी हो सकती है; जैसे कि जैन समुदाय में साक्षरता की दर सबसे अधिक है, फिर भी बच्चों का लिंग-अनुपात बहुत कम है। कुलमिलाकर हैरानी और बैचैनी पैदा करने वाले आंकड़ों का यह ऐसा गणित है जिसके हर एक अंक के साथ मिथकों की अंर्तगाथा भी जुड़ी है। इसलिए अंको को हल करने से पहले अंको की इन अंर्तगाथाओं को समझना जरूरी है।
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संपर्क : shirish2410@gmail.com
7 टिप्पणियां:
nice
अस्पतालों में भ्रूण हत्या के बाद फेके गए कचरे के डस्टबीन में .. और वहां से फेके जा रहे बडे बडे कूडेदानों या फिर विशाल कचरे की भीड में लडकियां तो नहीं .. पर उसके छोटे छोटे लाखों भ्रूण मिल जाएंगे .. और कहां जा सकती हैं ये लडकियां ??
एक जरूरी पोस्ट!
चिन्तनिय पोस्ट है , आभार आपका इस आँख खोलते हुए लेख को प्रस्तुत करन के लिए ।
शायद तरक्कीपसंद समाज में जब से LGBT आदि को कानूनी सहमति मिलने लगी है तबसे लड़कियां गायब होने लगी हैं आने वाले समय में प्रजनन के लिये भी स्त्री-पुरुष की दुविधा साइंस के विकास के साथ खत्म हो जाएगी। समाज की वैचारिकता की जड़ों में मट्ठा डाला जा रहा है तो ऊपर फूल कैसे और कब तक खिलेंगे?
बात बहुत सरल है। जिन्हें एक या दो बच्चे चाहिएँ वे अपने मनपसन्द लिंग याने पुत्र चाहते हैं, या कमसे कम एक पुत्र! जिन्हें संख्या की समस्या नहीं है वे पुत्र की चाह में या केवल संख्या की चाह में बिना अधिक भेदभाव किए बच्चे पैदा करते हैं। सो स्वाभाविक है कि पढ़े लिखे और उच्च या मध्यम वर्ग के लोग भ्रूण के लिंग का चुनाव करते हैं और वहाँ स्त्रियों की संख्या घट रही है।
घुघूती बासूती
ये हमारा दुर्भाग्य है कि आधुनिकता के वशीभूत हमारे समाज में ऐसे विषय आउट डेटेड हो गए हैं.................
हमने इस पर विचार करना बंद सा कर दिया है....................
आपने बहुत अच्छा लिखा, बधाई............विगत एक दशक से अधिक हो चुके हैं इसी विषय पर जन आन्दोलन चलाते हुए....पर?????????
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