इस दौरान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को वह चार्टर भी सौंपा गया जिसमें देशभर से करीब 8 लाख नागरिकों ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम में जरूरी संशोधन किए जाने की मांग का समर्थन किया था। क्राई का मानना है कि बच्चों को उनके मूलभूत अधिकारों से जोड़ने और उनके बीच की असमानताओं को घटाने के लिए अधिनियम में कुछ बातों को शामिल करना होगा। अगर अधिनियम और उसके प्रावधानों में यह संशोधन नहीं हुए तो भारत के बहुत सारे बच्चे शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार से बेदखल होते रहेंगे।
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गंभीरता से लेते हुए यह माना कि "शिक्षा तो मानवीय विकास की बुनियाद है और हर भारतीय बच्चे तक बेहतर शिक्षा पहुंचनी ही चाहिए।" क्राई की डायरेक्टर पूजा मारवाह के मुताबिक ‘‘हमने राष्ट्रपति के साथ 'सबको शिक्षा समान शिक्षा अभियान' से जुड़ी बहुत सारी बातों को साझा किया। हमने उन्हें बताया कि इस अभियान को देशभर में 18 राज्यों के करीब 8 लाख ऐसे नागरिकों का समर्थन मिला है जो चाहते हैं कि सभी भारतीय बच्चों के बीच एक समान और बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा व्यवस्था कायम हो। अब हमारी कोशिश यह है कि सरकार हमारी मांगों को माने, जिससे शिक्षा का अधिकार महज कागजी शेर बनकर न रह जाए और यह जमीनी स्तर पर भी अपना असर दिखा पाए।’’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘भारतीय बच्चों के नजरिए से शिक्षा के अधिकार का यह अधिनियम मील का पत्थर साबित हो सकता है, बशर्ते इस अधिनियम में छिपी संभावनाओं को व्यापक स्तर पर देखा और समझा जाए तो।’’
क्राई के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के सामने शिक्षा के अधिकार अधिनियम में जिन मांगों को शामिल किए जाने पर जोर दिया है, उनमें खास हैं : (एक) 6 साल से नीचे और 15 से 18 साल तक के बच्चों को भी मुख्य प्रावधान में लाया जाए। (दो) हर बस्ती से 1 किलोमीटर के भीतर योग्य शिक्षक और सुविधायुक्त स्कूल हों। (तीन) सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च हो।
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