शिरीष खरे
नागपुर । छोटी-छोटी बातों से जिंदगी बनती है और छोटे-छोटे सिरों से कहानी। यह छोटी-सी कहानी भी एक छोटे-से सिरे से शुरू होती है। लेकिन सबको एक बडे जज्बात से जोडती है। नागपुर की गंगानगर बस्ती में कभी तिरंगा नहीं फहराया था।
२६ जनवरी २००८ को लोगों ने तिरंगा फहराने की सोची। एक मामूली लगने वाले काम की अडचनों को देखते हुए टाल दिया। अगली बार फहराने का कहते हुए भूल गए। लेकिन बच्चों को याद रह गया। जो बच्चे आशाओं की नन्ही-नन्ही नसैनियां लगाकर आकाश पर चढते हैं, उन्हीं में से १२ बच्चों ने साल २००९ की उसी तारीख को आखिरी सिरा जोड दिया। ११ से १४ साल के इन बच्चों ने कौन-सा सिरा, कहां से जोडा, यह जानना भी दिलचस्प होगा।
आपने दो सच को एक साथ और अलग-अलग देखा हैं? यहां एक सच था- काम बेहद आसान है। दूसरा था- काम बेहद मुश्किल है। एक सच ’कहने‘ और दूसरा ’करने‘ से जुडा था। इसलिए एक सच ने दूसरे को बहुत दिनों तक दबाए रखा। लेकिन तीसरा सच भी था कि बच्चों का जज्बा किसी जज्बे से कम नहीं था। इस तीसरे सच ने दूसरे सच को अपने पाले में खीच लिया।
पहला सिरा
जनवरी २००८ की २६ तारीख पहला सिरा बना। इस रोज गंगानगर के लोग झण्डा ऊंचा करने के लिए एक हुए। लेकिन जिस खम्बे से तिरंगा फहराना था, वह टूट गया। लोग बिखर गए और बच्चों के दिल भी टूट गए।
१४ साल की हेमलता नेताम ने याद किया- ‘हमारी ’बाल अधिकार समिति‘ के सभी साथी ’बाल अधिकार भवन‘ में मिले। हमने अपनी बस्ती में तिरंगा फहराने की ठानी।’ इस लिहाज से अगली और अहम तारीख थी १५ अगस्त। बच्चों की बैठक से दो बातें निकली। एक- बस्ती के बडों से चर्चा की जाए। दूसरा- अपने पार्षद को एक एप्लीकेशन दी जाए।
आखिरी सिरे के पहले
११ साल की पूजा भराडे ने याद किया- ‘हमने काम को दूसरों पर छोडा और हार गए। हमें बडों के साथ एप्लीकेशन लिखनी और उन्हें लेकर आगे बढना था। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था। जब १५ अगस्त नजदीक आया तो लगा कि झण्डा सिर्फ दिलों में ही फहराकर रह जाएगा। सबकी आंखें १५ से हट गईं। हमारे दिल फिर टूट गए।’ लेकिन १५ की तारीख हार और हिम्मत की तारीख बनी। अगर यह नहीं आती तो २६ जनवरी २००९ जीत की तारीख कैसे बनती!
१५ अगस्त को वार्ड-१२ की पार्षद मीनाताई बरडे ने तिरंगा फहराया। उनके भाषणों से बच्चों के दिलों में देशप्रेम की भावनाएं उमडती थीं। बच्चों ने आजादी के नारे लगाए। फिर सबके सामने मीनाताई से २६ जनवरी के पहले खम्बा और उसका चबूतरा बनाने की मांग रखी।
देखते-देखते नए साल का सूरज उग गया। १२ साल की रोशनी ठाकरे ने याद किया- ‘हमें भी अपनी जिद पकडी। ५ जनवरी को सारे फिर बैठे। यहां दो फैसले हुए। यह पिछले फैसलों से अलग थे। एक तो अपने हाथों से एप्लीकेशन बनाई। दूसरा खुद जाकर पार्षद से मिलने की सोची। यह काम हमें ही करने थे इसलिए पूरे हुए।’
१३ साल के अक्षय नागेश्वर ने याद किया- ‘हमने जिम्मेदारियां बांटी। ८ जनवरी को १२ बच्चे पार्षद के आफिस पहुंचे। लेकिन मीनाताई नहीं मिलीं। हम उदास हुए, निराश नहीं।’ पार्षद से मिलने की दूसरी तारीख ११ जनवरी रखी गई। इस तारीख की सुबह ९ बजे बच्चे ऑफिस पहुंचे। मीनाताई फिर नहीं थीं। लेकिन मैनेजर ईश्वर बरडे मिल गए। बच्चों ने एप्लीकेशन उन्हें ही दे दी और उनसे मीनाताई का मोबाइल नंबर ले लिया।
बच्चों के अगले १० दिन भी इंतजार में गुजरे। अब पानी सिर के ऊपर था। २१ जनवरी को ’बाल अधिकार भवन‘ में तीसरी बैठक रखनी पडी। यहां से बच्चे फिर मीनाताई के ऑफिस पहुंचे। इस बार संबंधित अधिकारी अशोक सिंह का नम्बर मिला। बच्चों ने अशोक सिंह से खम्बा और उसका चबूतरा बनाने की अपनी पुरानी जिद दोहरायी। कुल मिलाकर बात आई और गई हो गई।
१४ साल के मनीष सोनावने ने याद किया- ‘२६ जनवरी नजदीक आया। यह परीक्षा की घडी थी। हम फिर मीनाताई के ऑफिस में गए। वह फिर नहीं मिली। इसलिए उनके घर जाना पडा। मीनाताई ने जब हमारी परेशानियाँ सुनी तो सॉरी कहा। उन्होंने २६ जनवरी के पहले तक खम्बा और उसका चबूतरा बनाने का वादा किया।’
सुबह की तस्वीर
मीनाताई की बातों से उत्साहित बच्चे घर लौटे। २६ जनवरी के एक रोज पहले बच्चे आगे आए। उन्होंने रात के पहले तक खम्बा और उसका चबूतरा बना डाला। जो बच्चे आकाश से पंतगें तोडकर अपनी छतों पर लहराना चाहते हैं, उन्हीं में से १२ ने अपनी बस्ती में पहली बार तिंरगा फहराने की ख़ुशी महसूस की थी। ’बाल अधिकार समिति‘ की नंदनी गायकबाड और उनके साथी नींव के खास पत्थर साबित हुए। नंदनी बोली- ‘अगली सुबह तिरंगा आंखों के सामने लहरा उठा। अब यह खम्बा बच्चों के दृढ संकल्प और समपर्ण का प्रतीक है।’
जब कोई बच्चा पहली बार जूते के बंध बांधता है तो उसके चेहरे की ख़ुशी देखती ही बनती है। एक रोज कुछ नन्हें हाथ मिले तो किसी ने न देखा। लेकिन जब छोटी-सी आशा हकीकत में बदली तो पूरे गंगानगर देखता रह गया।
’बाल अधिकार भवन‘ में बडा फासला मिटाने वाले छोटे-छोटे कदम एक साथ खडे है। हेमलता नेताम, पूजा भराडे, अक्षय नागेश्वर, रोशनी ठाकरे और मनीष सोनावने को एक तस्वीर में कैद किया गया है। तकदीर से बनी यह तस्वीर अब इस कहानी का आखिरी सिरा है। हो सकता है यह अगली कहानी का पहला सिरा बन जाए!!
2 टिप्पणियां:
भाई साधुवाद स्वीकारिये, सराहनीय प्रयास है लगे रहिये
भूमिका रूपेश
दोस्तों
आपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
http://charchamanch.uchcharan.com
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